स्पिवाक की ख्याति उत्तर-उपनिवेशवादी सैद्धान्तिक के रूप में विशेष रूप से यूरोपीय साहित्य और दर्शन के विषयों की आलोचना से सम्बन्धित है जो यूरोप की उपनिवेशवादी व्यवस्था का सैद्धांतिक समर्थन करते हैं । ऐसा हम उनके लेख संग्रहों जैसे- 'In Other Worlds' और 'Outside in Teaching Machine' और इनकी पुस्तकों जैसे ' A Critique of Post-colonial Reason' में देखा जा सकता है । इस तरह का साहित्यिक आलोचना का ढंग कुछ अंश में उत्तर-उपनिवेश सिद्धान्तवादी ' एडवार्ड सईद' (Edward Said) के 'Orientlism' पर आधारित है ।
जन्म : 24/02/1942 । स्थान : कलकत्ता ।

अपनी सैद्धांतिक रचनाओं में स्पिवाक ने उत्तर-उपनिवेशवाद' जैसी संज्ञा को ही खारिज कर दिया, क्योंकि उन्होंने अन्य विख्यात बौद्धिकों यथा एजाज अहमद(Eijaz Ahmad), आरिफ़ दर्लिक(Arif Dirlik), माइकेल हार्डट (Michael Hardt) और एण्टोनियो नेग्री (Antonio Negri) के साथ ही यह लक्ष्य कर लिया था कि उत्तर-उपनिवेशवादी सिद्धांत बहुत अधिक मात्रा में अपने औपनिवेशिक प्रभुत्व के पुराने स्वरूप पर ही केन्द्रित है और इसलिये वह दक्षिण-विश्व (Global-South) के निर्धन राष्ट्रों पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक की ढांचागत तालमेल की नीति (Structural Adjustment Policies) एवं समकालीन आर्थिक वैश्विक प्रभुत्व के प्रभाव को आलोचित करने में पूर्णतया अक्षम है ।
इसके अतिरिक्त स्पिवाक का प्रारंभिक वैचारिक लेखन उत्तर-उपनिवेशवादी सिद्धान्त के वैचारिक आधारों एवं सांस्कृतिक आलोचना से संबंधित है । 'एडवर्ड सईद' और 'होमी भाभा' के साथ स्पिवाक उत्तर-उपनिवेशवादी अध्ययन के क्षेत्र में एक प्रमुख बौद्धिक हस्ताक्षर मानी जाती हैं । 19वीं और 20वीं शताब्दी के आलोचनात्मक पाठ पर उनका अध्ययन, बंगाली लेखिका 'महाश्वेता देवी' की रचनाओं के उनके अनुवाद एवं 'सबाआल्टर्न' अध्ययन के क्षेत्र में उनका ऐतिहासिक अनुसंधान उनके रचनात्मक क्षितिज के निर्माण में आत्यन्तिक प्रभाव रखता है । उनके निबंध 'Three Women's Texts and a Critique of Imperialism' (1985), और 'Can the Subaltern Speak?' बहुप्रशंसित, बहुसंदर्भित एवं उत्तर-उपनिवेशवादी सिद्धांत के उत्कृष्ट पाठ के तौर पर बहुप्रतिष्ठित हैं ।
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